जूड सन्निथ
पनीर ने दक्षिण भारतीयों को अपना मुरीद बना लिया है और उनकी थालियों पर अब क़ब्ज़ा जमा लिया है. अमूल का कहना है कि दक्षिण भारत में उसने पिछले साल के मुक़ाबले पनीर की दो गुनी अधिक बिक्री की है और हतसुन/हैटसन एग्रो जिसकी गतिविधि विशेष रूप से दक्षिण भारत में ही है, के मुनाफ़े में नवीनतम तिमाही में 56 प्रतिशत की कमी आयी है लेकिन इस कंपनी ने डेयरी उत्पादों से ज़्यादा कमायी की है.
एक दशक पहले तक रसोई में पनीर की उपस्थिति नहीं के बराबर थी और लोग इसके बारे में अनजान थे. पर आज, पनीर डोसा चेन्नई में हर जगह उपलब्ध है और वह भी एक ऐसे शहर में जो मौलिकता और भोजन बनाने की परंपरागत पद्धति को छोड़ नहीं सकता और इस बात को वह छिपाता भी नहीं है.
देखें तो, चेन्नई का मायलापुर एक ऐसा इलाक़ा है जिसके बारे में कुछ लोगों का कहना है कि यह चेन्नई का सांस्कृतिक केंद्र है और यहाँ के खान पान में अभी भी परंपरा का श्रेष्ठ स्तर देखा जा सकता है. यहाँ स्थित सर्वना भवन में ऐसे स्वादिष्ट भोजन परोसे जाते हैं कि आप हाथ चाटते रह जाएंगे.
पनीर डोसा के मुरीद हुए लोग
“वर्षों से हम यहाँ नाश्ते में मसाला डोसा और सांभर वडा खाते आए हैं और कभी कभी ऐसा भी होता है कि हम इडली या घी रोस्ट (यह भी एक तरह का डोसा है) का भी आनंद उठा लेते हैं,” यह कहना है 57 साल के आर नारायणन का जो कि पास के ही एक सरकारी बैंक में काम करते हैं. “पर पनीर चीज़ डोसा में जो स्वाद है उसका तो जवाब ही नहीं. एक दिन मैंने भी इसका आनंद उठाने का निर्णय लिया और तब से अब में इसका मुरीद बन गया हूँ”. ऐसा करनेवाले नारायणन अकेले नहीं हैं.
पनीर डोसा और उसके दूसरे रूप – पनीर चीज़ डोसा, पनीर मसाला डोसा, और पनीर रवा डोसा आजकल चेन्नई में लोगों में पनीर के को लेकर बढ़ती दीवानगी का प्रतीक है. पनीर ने विशेष रूप से परंपरागत दक्षिण भारतीय व्यंजनों में भी अपनी जगह बना ली है : पनीर 65 (यह चेन्नई के चिकेन 65 का अपना विशेष तरह का पनीर संस्करण है), गन पाउडर पनीर और चिली पनीर.
ख़ास बात यह है कि गन पाउडर पनीर तो आंध्र के लोगों में विशेष रूप से लोकप्रिय हो गया है – विशाखापत्तनम- विजियानगरम मार्ग पर सड़कों के किनारे मिलनेवाले भोजनालयों में काफ़ी मसालेदार गन पाउडर लोगों को परोसा जाता है. “आप चाहें तो मसालेदार या अतिरिक्त रूप से मसालेदार गन पाउडर का ऑर्डर दे सकते हैं और जब इस तरह के भोजनालयों में लोकप्रिय स्थानीय नाश्ते डिब्बा रोटी का ऑर्डर देने जाते हैं तो वे इस बारे में आपसे पूछते हैं. इसमें कोई अचरज की बात नहीं कि पनीर दक्षिण भारतीय पब का पसंदीदा हो गया है. चेन्नई का मंकी बार तो पनीर घी रोस्ट अपने ग्राहकों को खिलाता है जो कि वैसे ही बनाया जाता है जैसे दक्षिण भारत का ख़ास चिकेन और इसका स्वाद भी वैसा ही होता है – थोड़ा मसाला और ढेर सारा घी.
“कोविड महामारी के बाद भोजन करने आनेवाले लोगों में स्वास्थ्य लो लेकर बढ़ती जागरूकता के कारण पिछले कुछ सालों में पनीर के प्रति लोगों में ख़ास दिलचस्पी देखी गयी है,” यह कहना है चेन्नई में खाने को लेकर ब्लॉग लिखने वाली दीक्षिता जैन का. उन्होंने बताया, “अगर आप शाकाहारी हैं, तो इस बात की उम्मीद ज़्यादा है कि आप आलू की जगह पनीर खाना पसंद करें क्योंकि मामला प्रोटीन और कार्ब्स के बीच चुनाव का होता है.”
इसमें संदेह नहीं कि विशेष रूप से मसाला डोसा खाने से जिस तरह आपको कार्ब्स प्राप्त होता है उसे देखते हुए स्वास्थ्य की दृष्टि से खाने के शौक़ीनों की पहली पसंद प्रोटीनयुक्त भोजन होता है जो एक बेहतर विकल्प देता है.
पनीर उत्पादकों का बिजनेस काफ़ी तेज़ी से बढ़ा
चेन्नई के हतसुन/हैटसन एग्रो ने वृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि चौथी तिमाही में उसका कारोबार कमजोर रहा और उसका मुनाफ़ा 56 प्रतिशत कम हो गया पर डेयरी उत्पादों से कंपनी की आय में 3.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई. यह कंपनी विशेष रूप से दक्षिण भारत में ही अपना कारोबार करती है.
पिछले साल पूरे दक्षिण भारत में अमूल ने पनीर की बिक्री में 50 प्रतिशत वृद्धि की बात कही और 2020 में घोषित लॉकडाउन के कारण पैकेज्ड फ़ूड मार्केट में जो तेज़ी आयी उसका कंपनी को भरपूर फ़ायदा हुआ. चेन्नई की ही एक एग्री-टेक स्टार्ट-अप वेकूल पैकेज्ड फ़ूड बाज़ार में अपना पाँव पसारने की काफ़ी कोशिश कर रही है और इसमें पनीर के उत्पाद भी शामिल हैं.
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एरोड स्थित मिल्की मिस्ट ने 20 पैकेज्ड उत्पादों को ऑम्नी-चैनल से लॉंच कर इस बाज़ार में अपनी धाक क़ायम की है और इस कंपनी का नीला पैकेजवाला पनीर लोगों में अपनी पहचान बना चुका है. कंपनी ₹75,000 करोड़ के बाज़ार वाले इस व्यवसाय में पूरे देश में अपना पाँव फैलाने जा रही है और इसकी विकास दर पिछले कुछ सालों से 18 से 20 फ़ीसदी रही है और दक्षिण में यह प्रतिशत और ज़्यादा रही है. इस समय राज्य का डाटा अलग से उपलब्ध नहीं है पर एक अनुमान के अनुसार चेन्नई में हर दिन लगभग 30 टन पनीर की खपत होती है.
“पिछले कुछ समय से दक्षिण में लोगों के खाने-पीने की आदतों में बदलाव आया है,” यह कहना है हतसुन/हैटसन एग्रो के चेयरमैन आर चंद्रमोगन का. उन्होंने कहा, “लोग अपना परंपरागत खाना तो खा ही रहे हैं पर बीच-बीच में वे कुछ नया आज़माना चाहते हैं और पैकेज्ड पनीर का मार्केट इसी बात का फ़ायदा उठाता है.” “हमारे पनीर उत्पादों की बिक्री में पिछले कुछ सालों से लगातार वृद्धि हो रही है; हम अगले तीन से चार सालों में इसमें 20 से 25 प्रतिशत सीएजीआर (CAGR) की वृद्धि की उम्मीद करते हैं.”
रेस्तराँ में पनीर के व्यंजनों की मांग लगातार बढ़ रही है और लोग इसका जी खोलकर लुत्फ़ उठा रहे हैं. दक्षिण भारतीय होटलों में जहाँ उत्तर भारतीय मेनू औपचारिकता के रूप में ही रखा जाता है, पनीर बटर मसला, कढ़ाही पनीर औ पनीर टिक्का पर लोग टूट रहे हैं. “हम हर दिन 200 से 250 पनीर बटर मसला लोगों को सर्व करते हैं,” यह कहना है अपूर्व संगीता दक्षिण भारतीय रेस्तराँ चेन के डेप्युटी मैनेजर मोहन का.
बात साफ़ है : बटर में बना है या घी में, मिर्च है, चावल का आटा है या इसे तंदूर में पकाया गया है – इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, पनीर दक्षिण भारतीयों का पसंदीदा भोजन बन चुका है! दीक्षिता कहती हैं, “मुझे इस बात से अब परेशानी नहीं होती कि दक्षिण के लोग अब इसे इतना ज़्यादा पसंद करते हैं.” “पनीर का उत्तर भारत से दक्षिण भारतीयों के पेट पर राज करने का बदलाव बहुत ही आसानी से हुआ है.
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