Kakori Lucknow: आजादी की लड़ाई में काकोरी कांड ने क्रांति की एक नयी अलख जगाई थी. जब लखनऊ के काकोरी में क्रांतिकारियों ने ट्रेन डकैती को अंजाम देकर ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दे डाली
Kakori Lucknow: आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर देशभर में आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. आज़ादी के मतवाले शहीदों को याद किया जा रहा है. ऐसे वक्त काकोरी कांड का ज़िक्र न किया जाये, ऐसा नहीं हो सकता. वो काकोरी कांड जिसने क्रांति की एक नयी अलख जगाई और देश की आज़ादी में मील का पत्थर भी साबित हुआ.
9 अगस्त 1925 का वो ऐतिहासिक दिन जब लखनऊ के काकोरी में क्रांतिकारियों ने ट्रेन डकैती को अंजाम देकर ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दे डाली. इस घटना के बाद पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई थी. क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था जिससे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को और मजबूती दी जा सके.
हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्यों ने इस घटना को अंजाम दिया था. सरकारी खजाने से करीब 4601 रुपये लूटे गए. इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. ब्रिटिश हुकूमत ने इस मुक़दमे पर करीब 10 लाख रुपये खर्च किये. सहारनपुर से लखनऊ की तरफ जाने वाली ट्रेन में आजादी के दीवाने लखनऊ के काकोरी स्टेशन से सवार हुए थे.
अब इस स्टेशन पर एक म्यूजियम बनाया हुआ है. इसमें वैसा ही एक लोहे का भारी भरकम बक्सा रखा है जैसा क्रांतिकारियों ने लूटा था. इसके अलावा म्यूजियम में कोर्ट में उस आदेश में पन्ने भी फ्रेम किये लगे हैं जिन पर वो जजमेंट है जिसमे क्रांतिकारियों को फांसी से लेकर उम्रकैद तक सजा सुनाई गयी थी.
डकैती की इस घटना को काकोरी स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर आगे अंजाम दिया गया था. जिस जगह क्रांतिकारियों ने चेन खींचकर ट्रेन को रोक और इस कांड को अंजाम दिया उसके करीब अब काकोरी शहीद स्मारक बना हुआ है. यहां शहीदों का मंदिर भी है जो अगस्त क्रांति की यादों को ताजा करता है.
प्रदेश सरकार ने काकोरी कांड को अब काकोरी ट्रेन एक्शन कहना शुरू किया हैं. जिन क्रांतिकारियों ने इस घटना को अंजाम दिया उन शहीदों के परिजन खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. बात करते वक्त उनकी आंखों में चमक और गजब का उत्साह दिखाई देता है. इन्हें फख्र है कि उनकी रगो में वो खून है जिसने देश की आज़ादी में अहम भूमिका निभाई थी.
इन क्रांतिकारियों ने आजादी की ऐसी अलख जगाई की जब केस की सुनवाई होती तो कोर्ट परिसर में क्रांतिकारियों के समर्थन में भीड़ उमड़ पड़ती था. इसके बाद मामले की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट स्थापित की गई. ये कोर्ट उसी भवन में बनायी गयी जिसे आज GPO यानि प्रधान डाकघर कहते हैं. ब्रिटिश हुकूमत के समय ये रिंग्स थिएटर हुआ करता था. हज़रतगंज में बना ये भवन आज भी उस तारिख का गवाह है जब कोर्ट ने क्रांतिकारियों को फांसी, उम्रकैद से लेकर अलग अलग सजा सुनाई थी.
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